सीखने-सिखाने की एक सहज एवं प्रभावी तरीका

 

बाल शोध -सीखने-सिखाने का एक सजह प्रक्रिया

सीखने-सिखाने के अपने-अपने तरीके हैं | अपने-अपने अंदाज हैं | और इस अकादमिक क्षेत्र में सीखने-सिखाने से सम्बंधित बहुतेरे नाम हैं | जैसे बाल केन्द्रित शिक्षण, आनंददायी शिक्षा, प्रोजेक्ट विधि, रचनात्मक शिक्षण विधा, खोजबीन विधि [Discovery learning of method] इत्यादि | सभी विधियों और विधाओं की अपनी-अपनी खूबियाँ हैं | खूबसूरती है | हलांकि इसकी व्याख्या भी जमीनी स्तर पर अलग-अलग देखने व सुनने को मिलता है | फिरहाल यहाँ इन शब्दों की व्याख्यात्मक विश्लेषण करना नहीं है | जरुरत यह है कि दबाव रहित हो कर हर एक बच्चा सीखने में शामिल [Involve] हो | कुछ नया सीखे | सीखने के उपरांत और सीखने के दौरान भी आनंद का अनुभव कर पाए | सीखे हुए पर पुनर्विचार करने के मौके मिले | अपेक्षित कौशलों के विकास के मौके मिले | कुछ करने का ,किये हुए को लिखने का और आत्मविश्वास हाशिल करने का अवसर मिल पाए |

हमारे पाठ्यपुस्तक के शुरुआत में ‘बड़ों से दो बातें’ और आमुख के अंतर्गत पढ़ने-पढ़ाने के तौर-तरीकों में फेरबदल की मांग करता है | आइये इसके कुछ अंश पर यहाँ गौर करें ...

पाठ्यपुस्तक में प्रयास है कि प्रत्येक उप विषय से जुड़े प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पक्ष बहुत सूक्ष्म रूप से उभरें, ताकि बच्चे अपने विचार सोच-समझ कर बनाएँ |

पुस्तक में विषय-वस्तु बालकेंद्रित रखी गयी है, जिससे बच्चों को स्वयं खोजकर पता करने, का अवसर मिले | पाठ्यपुस्तक में यह प्रयास किया गया है कि रटने की प्रवृत्ति कम हो,अतः परिभाषाएं, वर्णन, अमूर्त प्रत्यय आदि को स्थान नहीं दिया गया है | पाठ्यपुस्तक में जानकारी देना बहुत हीं सरल कार्य है | वास्तविक चुनौती है कि बच्चों को मौका दिया जाए, जिससे वे अपने विचार प्रकट करें , उत्सुकता को बढ़ा सकें , करके सीखें,प्रश्न करें तथा प्रयोग कर सकें | बच्चे पाठ्यपुस्तक से ख़ुशी-ख़ुशी जुड़ें,इसके लिए पाठों का प्रस्तुतिकरण विविध तरीकों से किया गया है,जैसे –किस्से-कहानियाँ,संवाद,कवितायेँ,पहेलियाँ,हास्य खण्ड,नाटक,क्रियाकलाप आदि | बच्चों में कुछ बातों के प्रति संवेदनाशीलता विकसित करने के लिए अक्सर किस्से-कहानियों का इस्तेमाल महत्वपूर्ण माना गया है , क्योंकि बच्चे कहानी के पात्र से अपने को आसानी से जोड़ सकते हैं |

ज्ञान सृजन के लिए बच्चों का क्रियाशील होना जरुरी है | पर्यावरण अध्ययन की पढ़ाई को कक्षा की चारदीवारी के बाहर से जोड़ा गया है | पाठ्यपुस्तक में क्रियाकलापों द्वारा बच्चों में अवलोकन क्षमता के लिए बाग-बगीचे, तालाब के किनारे, प्रकृति भ्रमण पर ले जाने की जरुरत है | इससे उनमें अवलोकन के साथ-साथ अन्य कौशलों का विकास भी होगा | पाठ्यपुस्तक में प्रयास किया गया है कि बच्चों के स्थानीय ज्ञान को विद्यालय के ज्ञान से जोड़ा जाए | पुस्तक में विविध प्रकार के क्रियाकलाप हैं जो बच्चों को अवलोकन, खोज, वर्गीकरण, प्रयोग, चित्र बनाना, बातचीत करना, अंतर ढूंढना , लिखना आदि सभी कौशलों को सीखने का मौका देंगे |

पुस्तक में इस बात की गुंजाईश है कि बच्चे ज्ञान के लिए शिक्षक और पाठ्यपुस्तक के अलावा अन्य स्रोतों की मदद लें ,जैसे –परिवार के सदस्य, समुदाय के लोग, समाचार पत्र एवं पुस्तकें इत्यादि | इससे यह स्पष्ट हो सकेगा कि पाठ्यपुस्तक हीं मात्र सीखने का स्रोत नहीं है | इससे बच्चों के अभिभावकों और समाज का विद्यालय से जुड़ाव तो होगा ही, साथ ही योगदान भी बढ़ेगा | शिक्षक को भी बच्चों के परिवारों के बारे में जानने का मौका मिलेगा |

लेखक मण्डल नें न केवल बच्चों के बारे में सोचा है ,अपितु अध्यापकों को भी ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा है जो ज्ञान सृजन करते हैं और अपने अनुभवों को बढ़ाते हैं ...[आस-पास तीसरी कक्षा के पाठ्यपुस्तक से ]  

 

बाल शोध : कक्षा शिक्षण की एक ऐसी गतिविधि है जिसमें बच्चों को खोजबीन, अवलोकन ,बातचीत और सवालों की मदद से सीखने और सीखने के दौरान अपने अनुभवों को मौखिक या लिखकर दूसरों के साथ साझा करने के अवसर मिल पायें |

इससे निम्नलिखित कौशलों के विकास में मदद मिलता है

·                   अवलोकन/खोजबीन 

·                   अभिव्यक्ति

·                   अनुभवों को लेखबद्ध करना

·                   आस-पास के चीजों/घटनाओं आदि को समझना

·                   निष्कर्ष निकालना इत्यादि  

·                   सृजनात्मक काम

·                   सहभागिता

प्रक्रिया :                                                                                                                                                                               

 बाल शोध यानि सीखने की इस प्रक्रिया में बच्चे अकेले या समूह में पाठ्यक्रम के अनुरूप कुछ थीमों पर खोजबीन करते हैं ,सवालों को गढ़ते हैं , बातचीत [साक्षात्कार] करते हैं ,जानकारियों को एकत्रित करते हैं | इन जानकारियों को अपने बोध का हिस्सा बनाते हैं |

·       शिक्षक कक्षा शिक्षण के दौरान जरुरत के अनुरूप पाठ्यक्रम के कुछ हिस्से को थीम के रूप में चयनित करते हैं |

·       थीम के अराउंड कक्षा में बच्चों के साथ बातचीत करते हैं ,गतिविधियाँ आदि करवाते हैं |

·       थीम के अनुरूप अवलोकन, भ्रमण या साक्षात्कार आदि की योजना तैयार करवाते हैं |

·       बच्चों का समूह बनवाते हैं ताकि सहभागिता जैसे कौशलों का विकास हो पाए | मिलजुल कर काम करने की प्रवृत्ति का विकास हो पाए |

·       थीम की स्पष्टता के लिए और बच्चे अपने विचार सोच समझ कर बना पाएँ इसके इर्दगिर्द सवाल बुनने को प्रोत्साहित करते हैं |

 

आज रा.उ.प्रा.वि.बिंदु खेड़ा में बाल शोध मेला का आयोजन हुआ | इस मेले में लगभग 30 अभिभावक 4 शिक्षक, संकुल प्रभारी एवं डायट से गीता किरन एवं प्रियंका कोश्यारी एवं अपने साथी शामिल रहे | मेले की शुरुआत में सभी को एक साथ बैठाकर मेले की अवधारणा एवं इसकी सफ़र को प्रधानाध्यापिका कमला पन्त जी द्वारा साझा किया गया | इसके बाद मेले का अवलोकन किया गया | सुक्ष्म जलपान के उपरांत समस्त शिक्षक साथी डायट प्रवक्ता एवं ए.पी.ऍफ़.के साथी के बीच अनुभवों को साझा किया गया | इस तरह शाम 3 : 15 pm बजे मेले का समापन किया गया | शिक्षक एवं बच्चों का उत्साह शाम तक भी ढलते सूरज की तरह सुकून भरा महसूस होता रहा |     

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