आजमाता रहा जोर इन पत्थरों  से ,
न पत्थर पिघला न मैं |
जिंदगी की भोर ख़त्म होने वाली है
न ओ हमें समझें न हम उसे समझे
पर मजे की बात तो ये है कि
हम दोनों समझ की बात हीं करते रहे |
आजमाता रहा जोर इन पत्थरों  से ,
न पत्थर पिघला न मैं |
चल रहा था इन पैरों से
पर पैरों के बारे में कभी सोचा नहीं
कि जाना कहाँ है इन पैरों से
बस चलता रहा ,चलता रहा
कभी अविराम तो कभी विराम
देता रहा इन पैरों को
जब थक जाता था
जब पक जाता था
आजमाता रहा जोर इन पत्थरों  से ,
न पत्थर पिघला न मैं |

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