पुस्तक समीक्षा -सब मजेदारी है ! कथा नीलगढ़

 

 

पुस्तक समीक्षा

सब मजेदारी है ! कथा नीलगढ़

इस पुस्तक को पढ़ते हुए महसूस किया कि विचार और व्यवहार से व्यक्ति के दिल में जगह बनता है | बस;थोड़ा थम के देखो , थोड़ा रम के देखो | इस जहां में खुबसूरत सी भी जगह है, वहाँ भी ज़रा ठहर के देखो | लोगों से बोलिए | बतियाए | उनके भी सुख दुःख में शामिल  होइए | फिर देखिए इन्सान होने के मायने और परिभाषाओं को ढूंढने की जरुरत कम पड़ेगी | आपका व्यक्तित्व और व्यवहार हीं इन्सान होने के मायने और परिभाषाए गढ़ने लगती है | इस किताब को पढ़ते हुए महानगर के हाईवे से लेकर नीलगढ़ के घने जंगलों के आदिवासी इलाकों के कच्चे रास्तों के बीच से जोड़ता हुआ सफ़र तय किया | और नीलगढ़ के घने जंगलों के बीच ठहरा | जो अब कहीं कहीं पक्के रास्ते में बदल गया है | यह रास्ता केवल ईंट -पत्थर से बना रास्ता भर नहीं है यह रास्ता इंसानी सफ़र का भी रास्ता है | एक परंपरा में रहते हुए दूसरी परंपरा और संस्कृति में जीते हुए एक नयी राह की झलक है | इस राह में अशिक्षा,अन्याय और सरकारी योजनाओं की जिल्लत झेलने के साथ-साथ जीवन को देखने ,जीने का सहज ढंग भी शामिल है |    

हर एक इन्सान से गहरा और आत्मीय रिश्ता बनाने की हुनर रखने वाले अनंत गंगोला जी द्वारा सब मजेदारी है ! कथा नीलगढ़ पुस्तक आदिवासी समाज के एक छोटे से हिस्से में धरातलीय प्रयासों एवं बदलावों के सफ़र की कहानी है | मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के नीलगढ़ में रहते हुए आदिवासी समाज के बीच जो समझ बनी है, यह अनुभव सामाजिक व अकादमिक क्षेत्रों में काम करने वालों के लिए उपयोगी  है | जैसा कि पुस्तक में भी जिक्र आया है कि नीलगढ़ को नजदीक से जानने समझने के लिए नीलगढ़ में जाकर हीं एहसास किया जा सकता है | मुझे लगता है कि जिस तरह से अनुभव बयां है उसे एहसास के स्तर पर बिना गए भी एक स्तर का महसूस किया जा सकता है | दूसरी बात लेखक अनंत जी के बारे में जितना भी समय गुजार पाया हूँ | आप की व्यवहार से बहुत कुछ सीखने को मिला है | काम करने के तरीके से लेकर खुद के जीवन को जीने का तरीका जो मिला | वह आज भी जेहन में जिन्दा है |

सब मजेदारी है ! कथा नीलगढ़ एकलव्य फाउंडेशन भोपाल द्वारा प्रकाशित है | इस पुस्तक में कुल 276 पृष्ठ है | जिसे छोटे-बड़े कुल 33 अध्यायों में छपा है | इस पुस्तक का मूल्य 175 रुपये मात्र है | एकलव्य फाउंडेशन का इस तरह का काम शिक्षा के भौगोलिक जगत के लिए एक फलदार बगिया के समान है | इस विचार रूपी फलों का उपयोग अपनी क्षमता के अनुरूप हम सब समय -समय पर उपयोग में लेते रहते हैं |                          

 Text, letter

Description automatically generated                                                                                                                                                                                                                                                                                            

पुस्तक की प्रासंगिकता : मेरी नजर में यह पुस्तक कई दृष्टि से महत्वपूर्ण है | सामाजिक रूप में इंसानी रिश्तों व संवेदनाओं की बात तो हम बहुत करते, सुनते मिल जाते हैं | इनकी जगह पर ख़ुद को रखकर एहसास करना, एक सायास और सार्थक प्रयास करना,एक मुश्किल भरा काम है | इस पुस्तक में इसकी जीवंत कहानी है | दुनिया की सबसे खुबसूरत चीज का नाम है रिश्ता | इस रिश्ते को लेखक नें जीया है | इसी जीयेपन को पढ़ने का रस इस पुस्तक में मिलता है | इसके अलावा अकादमिक रूप से भी यह पुस्तक उपयोगी है | इस पुस्तक को पढ़ते हुए लगता है कि पढ़ने-लिखने का सम्बन्ध कैसे अपने समाज के बारे सोचने एवं एक संवेदनशील इन्सान होने में मदद करता है | खासतौर पर शिक्षा और शैक्षिक काम को किस तरह से देखा व बरता जाए ? बच्चों को कैसे देखें ? स्थानीयता को किस तरह से देखा जाए ? इसका उपयोग सीखने-सिखाने में किस स्तर तक किया जा सकता है | इसके भरपूर उदाहरण इस पुस्तक में है | अभावों की दुनिया में भावों की सम्पन्नता ,विपन्नता को बौना कर देती है | जैसा कि निरपत दादा कहते हैं “सब मजेदारी” है | यह वाक्य लेखक अनन्त जी के मन में उठ रहे पीड़ाओं और भावों में जिंदगी की  एक नई भाव भर देता है | शायद यहीं से जुड़ती  चली जाती है नीलगढ़ की अनगढ़ कहानियाँ ...

इस पुस्तक की भाषा शैली उतनी हीं सरल है जितना कि नीलगढ़ के लोंगों का स्वभाव | सरल,सधा हुआ और भावों से भरा हुआ | इससे ज्यादा उपयुक्त होगा यह कहना कि इस पुस्तक में तामझाम और बनावटीपन से दूर ख़ुद के और वहाँ के लोंगों के जीये  गए शब्द हैं  | कहीं -कहीं स्थानीयता की भी पुट है | ऐसे शब्दों से पुस्तक पढ़ने की चुम्बकत्व शक्ति और बढ़ सी जाती है जैसे कि ‘चूल्हे की गरमागरम रोटी-वह भी कल्ले (मिट्टी के तवे ) पर सिंकी हुई-बहुत हीं स्वादिष्ट लग रही थी / काफी गीले गुंथे आटे से बनी इन रोटियों को कोमल नें हाथ से हीं बनाया था / हाथ से बनी रोटी पर चकला बेलन पर बनी रोटी की तरह ऊपर से सूखा आटा नहीं लगाया जाता है / इसलिए ये रोटियाँ मोटी होने के बाद भी बहुत मुलायम थी / लकड़ी के अंगारों की आँच पर सिकने की वजह से इनमें धुंएँ की भीनी-भीनी गंध भी समा गई थी और एक अलग तरह का स्वाद भी / मैनें बिना रुके कई रोटियाँ खा लीं’/

ऐसे हीं इस पुस्तक में दिए कुछ और अंशों को रख रहा हूँ जो कि पुस्तक को समझने और शिक्षा व सामाजिक  क्षेत्र में हम जैसे लोंगों के लिए मददगार साबित हो सकता है –-‘फिर भी एक स्कूल चलाने जैसा न तो अनुभव था,न हीं कोई प्रशिक्षण / एक बात दिमाग में जरुर थी कि बच्चों के सीखने के दौरान उनसे दोस्ताना रिश्ता हो /

यह बात मैनें मन हीं मन तय कर ली कि स्कूल की शुरुआत हमें सिर्फ खेलकूद, गीत, कविता और किस्से, कहानियां ही होंगी / इन बातों में बच्चों की नैसर्गिक रुचि होती है / ऐसा करने से बच्चे सहज होंगे और मेरा उनके साथ रिश्ता भी बनने लगेगा /मन में यह भी था कि बच्चों के साथ काम करते ही किसी शिक्षक के लिए बच्चों, उनके परिवार, उनकी रूचि, डर आदि को समझना बहुत जरूरी है/ इसलिए सोच रहा था कि शुरू का काफी समय बच्चों से उनके परिवार और गांव को समझने में लगाऊँ /

आज का नीलगढ़ कई मायनों में तीन दशक पहले के नीलगढ़ से अलग है, पर कुछ मामलों में यह अब भी बिल्कुल वहीँ आदिवासी गाँव है जो बरसों और सदियों से हुआ करता था .....आपसी मेलजोल एक दूसरे के दुख- सुख में काम आना और उत्सव मनाने का क्रम भी उसी तरह से जारी है....’

मुझे लगता है कि सब मजेदारी है !कथा नीलगढ़  पुस्तक के बहाने इंसानी जीवन यापन, शिक्षा एवं सरकारी व्यवस्थाओं के बारे में कई नजरियों से झांका जा सकता है | बड़े हों या बच्चे उनके साथ एक आत्मीय लगाव,सुख-दुःख में भागीदारी आदि सदियों से इस समाज की जरुरत है और आगे भी रहेगी |

जय शंकर चौबे

अज़ीम प्रेमजी फाऊंडेशन

उधमसिंह नगर,उत्तराखंड

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