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                 चरवाह                                           चरवाह ,जिंदगी की दिखाव से बेपरवाह  पगडन्डियों के रास्ते चल रहा है | मन में गुनगुनाता है, जिंदगी की धुन पर मन में रहती है चिंता , और रहता है संकोच | कोई सुन ना ले, मेरे दुखों का धुन मेरे सुखों का सूखापन, इस सुनसान इलाके में | पर वृक्षों की झुरमुटों ने हवाओं की फिदाओं ने निर्मल भावनाओं ने सुनती है चरवाह की धुन | शुरू होती है जिंदगी की अगली धुन जो जिंदगी की गन्दगी को धो कर, अहम के वहम को छोड़ कर जिंदगी को जिंदगी बनाती है , और चरवाह को बेपरवाह | चरवाह जिंदगी की दिखाव से बेपरवाह , पगडंडियों के रास्ते चल रहा है |   जय शंकर चौबे
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लिखने की पड़ताल (जय शंकर चौबे) स्कूल की दैनिक क्रिया कलाप के बाद सभी बच्चे अपनी-अपनी कक्षा में बैठते हैं | बच्चों की उपस्थिति ली जाती है | स्कूल में एक शिक्षक एक शिक्षिका हैं तथा एक शिक्षा मित्र हैं | आप सभी समय के पाबन्द हैं | बच्चों को भी कुछ न कुछ काम जरुर देते हैं | कक्षा एक व दो एक साथ ,कक्षा तीन,चार एक साथ और कक्षा पाँच बरामदे बैठ जाते हैं | कक्षा एक ,दो मे ब्लैक बोर्ड के आधे भाग में वर्णमाला आधे में अमात्रिक शब्द लिख दिए गये | बच्चें अपनी कापी में उतारने की कोशिश कर रहें हैं | तीसरी के बच्चे हिंदी की किताब से सुलेख लिख रहें हैं चौथी के बच्चे अलग-अलग पाठों के अभ्यास कार्य पूरे कर रहें हैं | अभ्यास कार्य में रिक्त स्थानों की पूर्ति ,प्रश्नोत्तर ,मिलान करना आदि काम कर रहे हैं | पांचवी के बच्चे जो कि बरामदे में बैठे हैं | यहाँ प्रधानाध्यापक जी अपनी विभागीय काम करने के बाद एक पेज की इमला स्पष्ट स्वरों में बोलते हैं | इसके बाद एक-एक बच्चे की कापी चेक कर जहाँ वर्तनी सुधार करनी है उस शब्द को लाल घेरा बना कर वहाँ शुद्ध शब्द भी लिख देते हैं | चार बच्चे शायद कुछ ज्यादा गलती लिखे थे