चरवाह                 
                        चरवाह ,जिंदगी की दिखाव से बेपरवाह 
पगडन्डियों के रास्ते चल रहा है |
मन में गुनगुनाता है, जिंदगी की धुन
पर मन में रहती है चिंता ,
और रहता है संकोच |
कोई सुन ना ले, मेरे दुखों का धुन
मेरे सुखों का सूखापन,
इस सुनसान इलाके में |
पर वृक्षों की झुरमुटों ने
हवाओं की फिदाओं ने
निर्मल भावनाओं ने
सुनती है चरवाह की धुन |
शुरू होती है जिंदगी की अगली धुन
जो जिंदगी की गन्दगी को धो कर,
अहम के वहम को छोड़ कर
जिंदगी को जिंदगी बनाती है ,
और चरवाह को बेपरवाह |
चरवाह जिंदगी की दिखाव से बेपरवाह ,
पगडंडियों के रास्ते चल रहा है |


 जय शंकर चौबे

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