लिखने की पड़ताल
(जय शंकर चौबे)
स्कूल की दैनिक क्रिया कलाप के बाद सभी बच्चे अपनी-अपनी कक्षा में बैठते हैं | बच्चों की उपस्थिति ली जाती है | स्कूल में एक शिक्षक एक शिक्षिका हैं तथा एक शिक्षा मित्र हैं | आप सभी समय के पाबन्द हैं | बच्चों को भी कुछ न कुछ काम जरुर देते हैं | कक्षा एक व दो एक साथ ,कक्षा तीन,चार एक साथ और कक्षा पाँच बरामदे बैठ जाते हैं | कक्षा एक ,दो मे ब्लैक बोर्ड के आधे भाग में वर्णमाला आधे में अमात्रिक शब्द लिख दिए गये | बच्चें अपनी कापी में उतारने की कोशिश कर रहें हैं | तीसरी के बच्चे हिंदी की किताब से सुलेख लिख रहें हैं चौथी के बच्चे अलग-अलग पाठों के अभ्यास कार्य पूरे कर रहें हैं | अभ्यास कार्य में रिक्त स्थानों की पूर्ति ,प्रश्नोत्तर ,मिलान करना आदि काम कर रहे हैं | पांचवी के बच्चे जो कि बरामदे में बैठे हैं | यहाँ प्रधानाध्यापक जी अपनी विभागीय काम करने के बाद एक पेज की इमला स्पष्ट स्वरों में बोलते हैं | इसके बाद एक-एक बच्चे की कापी चेक कर जहाँ वर्तनी सुधार करनी है उस शब्द को लाल घेरा बना कर वहाँ शुद्ध शब्द भी लिख देते हैं | चार बच्चे शायद कुछ ज्यादा गलती लिखे थे | उन चारों बच्चों की कापी में एक वाक्य अपनी पेन से लिखे | बच्चों को उसी लाइन को पूरी कापी भरनी थी | चूँकि इमला के समय राईटिंग बन नहीं पायी थी तो शेष बच्चों को भी अखबार या कहानी की किताब से चुन कर सुन्दर अक्षरों में लिखने का काम दिया गया | इधर दूसरी के बच्चे बोर्ड पर लिखे सभी अक्षर उतार लिये थे तो सभी बच्चों के कापी में कुछ शब्द एक लाइन में लिख कर दे दिया गया जिसे बच्चे हुबहू उसी शब्द को तन्मयता से उतारने में लग गये | यह पुनीत काम लगभग सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में कमोबेश देखने को मिल जायेगे |
सवाल यह है कि लिखना क्या होता है ? ‘लिखना सिखाने’ के उद्देश्य और हमारे सिखाने के ‘प्रयास’ में कितनी फर्क है ? हम जूनियर कक्षाओं के बाद भी रटे-रटाये निबंध के अलावा जैसे मेरी माँ, गाँव का हैंड पैम्प या गाँव में घटित किसी घटना के बारे में अपने विचार क्यों नहीं लिख पाते ?
ऐसा नहीं लगता कि शिक्षक साथी के मेहनत में कोई कमी है | हर बच्चे की कापी चेक करना ,वर्तनी सुधारना ,सुन्दर लेखन हेतु निर्देश लिखना इतना सब काम आसान नहीं है | चूँकि सुलेख या अन्य चींजो के लिखने का काम यदि स्कूल में या होम वर्क के रूप में नहीं दिया गया तो अभिभावक भी नाराज होते हैं | और बतौर शिक्षक हम बच्चों को लिखने का इतना आदी बना दिए हैं कि लिखने का काम न देने पर बच्चे भी कहते हैं कि आज काम नहीं मिला |
 शिक्षक साथियों से बात के दौरान यह महसूस हुआ कि लिखना सिखाने के उद्देश्य और हमारे ‘लिखना सिखाने की दृष्टिकोण’ में फर्क है | लिखने का बहुत स्पष्ट मतलब है विचारों कि अभिव्यक्ति ,सम्प्रेषण और संरक्षण | जब हम विचारों कि अभिव्यक्ति कहते हैं तो इसका मतलब हमारे मौलिक विचारों से है न कि हुबहू नक़ल कर लिखना | यदि हम किसी कहानी ,लेख या घटना का वर्णन पढते हैं तो पढने के बाद हमारी क्या समझ बनी यदि हम अपनी शब्दों में लिखते हैं,आशय के रूप में ,कमेन्ट के रूप में तो एक तरह का यह हमारा खुद का विचार होगा | दूसरी बात लिखने का मतलब पढने की भांति किसी सन्दर्भ में अर्थपूर्ण लिखना से है यह एक प्रक्रिया है न कि एक पड़ाव | 
यदि कुछ क्षण के लिये अक्षरों के मानकीकरण को विराम देर कर बच्चों के लेखन आकृतियों पर ध्यान दें तो उसमे सबसे ज्यादा मौलिकता दिखेगा | बड़े से बड़े फिल्मकार ,रचनाकार , चित्रकार या लेखक बच्चों के मौलिक सोच के स्तर पर आने की कोशिश करते हैं और यह मौलिकता हीं उनके कामो को एक अलग पहचान देती है | 
लिखना एक कला है | एक सृजनात्मक कार्य है | हम सब शुरुआत में अक्षर आकृति सिखाते हैं | हम सब मानते हैं बच्चों के लिये शुरुआत में अक्षर भी एक चित्र की भाँति होते हैं | चित्र का मतलब बनाने वाला  अपनी मन मर्जी से उस आकृति को आकार दे, बनाए | उसमें बच्चे की पूर्व के अनुभव व भावनाए भी शामिल होती हैं | इसका मतलब यह नहीं है कि गुलाब के फुल को वह बाल्टी का चित्र बना देगा | यदि बाल्टी का चित्र बनाना है तो वह अपने विचार से अपनी दृष्टिकोण से बाल्टी का हीं चित्र बनाएगा उसकी साइज ,बनावट आदि में फर्क पड़ना लाजमी है किन्तु सन्देश में उसके बाल्टी का चित्र हीं रहेगा | इसका उल्टा यदि हमे किसी स्थान  या वस्तु का मानचित्र बनाना हो तो उसमें बनाने वाले की नजरिए या भावना का कोई स्थान नहीं होता,  मानचित्र का अनुपात सुनिश्चित होता है, | और हम सब जानते हैं कि मानचित्र बनाना हम बडो के लिये भी कितना कठिन कार्य है | अब हम अंदाजा लगा सकते हैं कि अक्षराकृतियों को ठीक-ठीक मानचित्र कि भांति लिखने कि जो कवायद करते हैं कितना मुश्किल काम होता होगा |
जब बच्चे पेपर/कापी पर गोदा-गादी करते हैं , लाइने खींचते हैं ,चित्र बनाते हैं तो यह एक तरह से लिखने की शुरुआत है | इस दौरान बच्चों के मस्तिष्क और हाँथ का सामंजस्य भी दिन प्रतिदिन मजबूत हो रहा होता है | दूसरी बात शिक्षक/शिक्षिका इस अभावग्रस्त माहौल में भी बच्चों के लेखन अभ्यास हेतु जितना परिश्रम करते हैं शायद हीं कोई करे | बच्चों के हाँथ पकड़ कर अक्षर आकृतियों के बनाने में मदद करना , कापियों में अभ्यास कार्य देना ,चेक करना , कुछ पैराग्राफ लिखवाने का काम इन गतिविधियों के दौरान बच्चा अक्षर/शब्द/वाक्य लिखने का अभ्यास एक स्तर तक कर लेता है | किन्तु इसे उत्पाद या पड़ाव के तौर पर न देंखें | यह एक प्रक्रिया है जो कि विविध अभ्यासों के जरिये निखरता रहता है | जब बच्चा शब्द/वाक्य लिख लेता है या चौथी/पांचवीं में पैराग्राफ लिखता है ,चित्र देख कर वाक्य या कहानी लिखता है या अधूरी कहानी को पूरा करता है तो उसके लिखे हुए पर बातचीत करने की जरुरत होती है | लिखना शुरू करने के पहले भी बातचीत करें जिससे बच्चों को लिखने में आसानी हो या अपनी बातों /शब्दों को विस्तार दे सके | अपनी बातों को व्यवस्थित तरीके से रख पाए | इसके लिये इसी नजरिये से कापी भी चेक करनी होगी न कि केवल वर्तनी सुधार की दृष्टि से | लिखने के ऐसे विविध अभ्यास कराएं जिसमें बच्चों के मौलिक विचारों को बढ़ावा मिले | नीचे कुछ गतिविधियों को संकेत के तौर पर दिया जा रहा है आशा है आप इन गतिविधियों को कराते होंगे या इसी तरह की अन्य गतिविधियों को भी करावा सकते हैं .....
सधन्यबाद... 

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